Thursday 23 April 2015

मधुरता / sweetness

वाणी में मधुरता का अर्थ है कि हमारे बोल में इस प्रकार के लक्षण हों या ऐसा प्रभाव हो कि सुनने वाले का मन शांत और प्रसन्न बना रहे, उसके मन में हमारे प्रति नकारात्मक विचार न आएं और उसके चेहरे पर ख़ुशी और संतुष्टि बनी रहे. ध्यान रहे कि मीठा बोलते समय मन के भीतर भी मिठास हो नहीं तो आपका व्यवहार नकली ही लगेगा.
प्रेम, स्नेह और सम्मान में कहे गए शब्द मधुर होते हैं जैसे प्रेरणादायक शब्द, सहानुभूति के शब्द और प्रशंसा के शब्द. जबकि क्रोध, इर्ष्या या अहंकार के वश कहे गए शब्द कटु होते हैं जैसे उपहास करना या मज़ाक उड़ाना, व्यंग्य या कटाक्ष करना, ताने मारना, कमी निकालना या निंदा करना, ऊंची आवाज़ में बोलना जैसे डरना, धमकाना या रौब जमाना.
मधुरभाषी होने का फल भी मधुर होगा. मधुरभाषी होने से सब की दुआएं पाएंगे, लोगों के साथ कर्मों के नकारात्मक खाते नहीं बनेंगे, सब से मधुर सम्बन्ध बनेंगे जिससे सब का सम्मान व सहयोग भी पाएंगे. व्यवहार में मधुरता होने से दुश्मन घटेंगे और दोस्त बढ़ेंगे. सर्व के प्रिय बनेंगे तो सुख आएगा और जीवन आसान होगा.

वाणी में मधुरता लाने पर ध्यान दिया जाना चाहिए. अड़ोसी पड़ोसी, सहकर्मी, मित्र सम्बन्धी सभी को एक परिवार का समझेंगे तो स्नेह की दृष्टि पनपेगी. सभी को एक ही ईश्वर की सन्तान समझने से द्वेष की दृष्टि नहीं रहेगी. अहंकार घटाने से स्वयम को श्रेष्ठ व औरों को तुच्छ नहीं समझेंगे. बदले की भावना भी खत्म होगी. संतुष्ट रहने व रहमदिल बनने से भी वाणी शीतल बनेगी. आत्मिक स्वरूप में रहने से व ईश्वरीय स्मृति में रहने से ये सब सम्भव होगा और स्वयम तथा वाणी पर नियंत्रण आएगा.

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