इच्छाएँ असीमित होती हैं. वर्तमान इच्छाएँ पूरी होते ही हम नई सूची बना कर ईश्वर के सामने प्रस्तुत कर देते हैं. कानूनों, रिवाजों, रीतियों, आदि की लगाम न हो तो ये मानव
मन जाने क्या क्या इच्छाएँ करने लगे. ऐसी इच्छाएं भी करेगा जो दूसरों के अधिकारों
का हनन करें, दूसरों के लिए दुःख का कारण बनें. तब वे इच्छाएँ स्वार्थ हो जाएंगी,
अधर्म होंगी, अवैध होंगी, नाजायज़ होंगी. रिश्वत, चोरी, दुष्कर्म, हत्या, परपुरुषगमन,
परस्त्रीगमन, आदि ऐसी ही भयानक इच्छाओं के परिणाम हैं.
वैसे भी बहुत सी इच्छाएँ ऐसी होती हैं जहाँ प्राप्ति के
साथ ही ख़ुशी की समाप्ति हो जाती है. अप्राप्य वस्तु का आकर्षण बना रहता है,
प्राप्त होने पर कीमत घटती जाती है.
कुछ इच्छाएँ ऐसी होती हैं जो पूरी करने पर और बढ़ जाती
हैं, तो कोई कहाँ तक पूरी करे.
कुछ इच्छाएँ ऐसी होती हैं जिन के हम लायक पात्र नहीं होते / हम पात्रता नहीं रखते.
कुछ इच्छाएँ भावुकतावश पैदा होती हैं अतः अस्थाई होती
हैं. उन्हें पूरा कर लेना जल्दबाजी होती है, बाद
में पछताना पड़ता है.
इच्छाएँ पैदा होना स्वाभाविक है किन्तु उनका विश्लेषण कर
ये जान लेना ज़रूरी है की कहीं नाजायज़ तो नहीं, अगर ऐसा है तो बुद्धि को तर्क
द्वारा समझा बुझा कर उस इच्छा का त्याग किया जा सकता है. मन को मारना नहीं मनाना
चाहिए.
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