Friday 12 June 2015

नियम / Niyam- Rules (Ashtang YOG / Rajyog)

नियम (Rules, Personal Discipline)
महर्षि पतंजलि द्वारा योगसूत्र में यम की ही भांति  पांच नियम भी दिए गए हैं जिन्हें अष्टांग योग (Ashtang YOG / Rajyog) की द्वितीय सीढ़ी कह सकते है. ये हैं शौच , संतोष , तप, स्वाध्याय, और ईश्वर प्रणिधान.

  1. शौच / पवित्रता (Purity)- स्नान से काया की, स्वार्थ त्याग से व्यवहार की, न्यायोचित विधि से कमाए गए धन से प्राप्त सात्विक भोजन करने से आहार की शुद्धि पाना यह बाहरी पवित्रता है. काम क्रोध लोभ मोह अहंकार आदि विकृतियों का  त्याग करना  भीतरी पवित्रता है.
  2. संतोष (Contentment)- सफलता -असफलता, सुख दुःख, नफा नुकसान, निंदा -तारीफ़ आदि किसी भी परिस्थिति में संतुष्ट महसूस करना अर्थात  शिकायत न करना, हलचल में न आना.
  3. तप (Endurance)- धर्म पालन, संयम या  इन्द्रियों पर नियन्त्रण पाने के लिए सुख व आराम का त्याग करना तप है.
  4. स्वाध्याय (Self study)- धर्म सम्बन्धी ज्ञान वर्धन के लिए धर्म ग्रंथों को पढना, उनका चिन्तन मनन करना और अन्य से उन विषयों पर वार्तालाप करना स्वाध्याय है.
  5. ईश्वर प्रणिधान (Dedication to GOD)- तन, मन और धन ईश्वर के ही समझना, ईश्वर को मन, वचन और कर्म समर्पित करना और ईश्वर को पसंद हो ऐसा ही देखना, सुनना, बोलना सोचना और करना. 

No comments:

Post a Comment