Monday 15 June 2015

अस्तेय / Honesty

अस्तेय (ईमानदारी) का अर्थ है कोई भी वो वस्तु अपने पास न रख लेना या अपनी न बना लेना जो हमारी नहीं है या जिस पर हमारा हक नहीं है या जिसके बदले हमने कुछ (वस्तु या कार्य) दिया नहीं. ईमानदारी के ही पहलू हैं सत्यता, लोभ रहितता व निष्ठा. अस्तेय महर्षि पतंजलि द्वारा बताए गए पांच यमों में से एक है. जो अस्तेय नहीं कर सकता उसका अर्थ है कि उसका स्वयं पर नियंत्रण नहीं है.

अस्तेय का पालन करने का अर्थ है धोखा न देना. हेरा फेरी न करना. चोरी न करना. झूठ न बोलना. स्वयं से, औरों से व ईश्वर से ईमानदार. कोई न भी देख रहा हो तो भी ईमानदार.

ईमानदारी के आसानी से दिखने वाले लक्षण हैं:
  • रास्ते में पड़ी धनराशि घर न ले आकर दानपात्र में डाल देना.
  • कोई व्यापारी गलती से अधिक सामान या रूपए दे दे तो उसे वापस कर देना. 
  • खाली बैठ कर तनख्वाह न लेना. 
  • दो नम्बर का धन न कमाना. 
  • किसी और की सम्पत्ति न हड़पना. 
  • अपने मकान की चारदीवारी बढाकर सरकारी जमीन न घेरना. 
  • सम्पत्ति बंटवारे के समय दूसरे का हक न मारना. 
  • जितना खर्च हुआ उतना ही बताना. झूठे बिल न बनाना. 
  • बिना आमंत्रण किसी अनजान की शादी या पार्टी में घुस कर खाना न खाना. 
  • सरकारी गाड़ी व नौकरों का गैर क़ानूनी घरेलू इस्तमाल न करना.
अस्तेय का पालन करने से अनेक लाभ व् प्राप्तियां होती हैं.

ईमानदारी से आत्मा में बल भरता है. हम स्वयम का सम्मान कर पाते हैं तथा औरों द्वारा सम्मानीय व भरोसेमंद बनते हैं. मन की शांति बनी रहती है. किसी को दुःख देने का कारण नहीं बनते. हमारे विकर्मों की सूची नहीं बढ़ती. अपनी सन्तान ईमानदार बनती है. ईमानदारी से कमाया गया धन शुद्ध कमाई कहलाता है. शुद्ध कमाई से खाया गया अन्न भी अन्तःकरण को शुद्ध रखता है.

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