Sunday 10 May 2015

पवित्रता / Purity


अर्थ

मन-वचन-कर्म, दृष्टि-वृत्ति-कृति, संकल्प व स्वपन सब में शुद्धता या शुचिता होना.
सभी विकारों (काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार) से पूरी तरह मुक्त होना पवित्रता है.

पवित्र आत्मा के लक्षण
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            ईमानदारी (आनेस्टी) – रुपयों की हेरा फेरी न करे, रिश्वत न ले, खाली बैठ कर तनखा न ले.
·         पारदर्शिता– पवित्र व्यक्ति के पास छिपाने कि बातें कम होंगी.
·         निश्छलता– उसके व्यवहार में धोखा व चालाकी नहीं होगी. कथनी करनी समान होगी. मन में होगा वही ज़बान पर होगा.
·         सरलता– घुमा फिराकर बात करने की बजाये स्पष्ट बात करेगी. मन वचन से समान होगी. अर्थात जो
·         चेहरे व चाल चलन में रूहानियत व रोयालिटी होगी.
·         सब के प्रति शुभकामना शुभ भावना, रहम व कल्याण की भावना होगी.
·         सदा दुआएं देने और लेने वाली होती हैं.
·         पवित्र आत्मा सदा संतुष्ट व सर्वस्व त्यागी होगी.

प्राप्तियां
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        आत्मा के सातों मूल गुणों की पुनः प्राप्ति होगी. वही सातों गुण जो हर आत्मा ईश्वर के घर से अपने प्रथम जन्म के समय भरपूर मात्रा में ले कर आती है. वे गुण हैं शांति, प्रेम, आनंद, ख़ुशी, पवित्रता, ज्ञान व शक्ति.
·         आत्मा का आभा मण्डल ताकतवर बनेगा (स्ट्रोंग औरा).
·         सर्व गुणों से संपन्न व सोलह कलाओं से सम्पूर्ण हो जाएगी.
·         सब की प्रिय व पूजन योग्य बनेगी
·         हेल्थ-वेल्थ-हैप्पीनेस के हकदार बनेगी.

पवित्रता कैसे बढाएं?

1.      अशरीरी (देह से अलग आत्मा) होने का अभ्यास करने से आत्मा का शुद्धिकरण होता है. संकारों का परिवर्तन होता है.
2.      ईश्वर की गहरी याद में जाने से (आत्मा का परमात्मा से योग) आत्मा पवित्र होती जाती है. बुराइयां स्वतः छूटती जाती हैं.

3.      अपनी किसी भी इंद्री द्वारा अपवित्रता ग्रहण न करने से -

आँखों द्वारा – देह के अभिमान से भरे अखबार, मैगज़ीन, किताबें न पढना, सिनेमा न देखना, वास्तविक जीवन में भी शादी-ब्याह, पार्टी, आदि में ज्यादा देर न रुकना. टीवी के सिर्फ स्वास्थ्य व आध्यात्मिक चैनल देखना. घर में देह अभिमान के चित्रों की बजाए ज्ञान से संबंधित चित्र चार्ट लगाना.
कानों द्वारा – सिर्फ ज्ञान के गीत सुनना, किसी के द्वारा बताई गयी अपवित्रता की बात न सुनना.
मुख द्वारा – अश्लील भाषा गालियाँ , निंदा , अहंकारी , नकारात्मक , भाषा का प्रयोग न करना.
भोजन द्वारा  – गली-बाज़ार के ठेलों पर, रेस्तरां, ढाबे, ब्याह-शादी, पार्टी आदि में खाना न खाना ; अज्ञानी आत्मा के हाथ का बना खाना न खाना ; योगयुक्त होकर बनाना, ईश्वर को भोग लगाना (भोजन को प्रसाद बनाना), ईश्वर की  याद में खाना. लहसुन, प्याज, माँस, मदिरा, व नशीले पदार्थ का सेवन न करना.
स्पर्श द्वारा – अपवित्र शरीरों के स्पर्श से बचना. ज्ञानी व पवित्र आत्माओं का संग करना.

  

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